एकालाप / भारतेन्दु प्रताप सिंह
गैस चेंबर द्वितीय विश्वयुद्ध में
या हिटलर का प्रथम प्रयोग नहीं था,
शुरुआत तो तभी हो गयी,
जब जंगली रास्तों पर
छुपे हुए फंदे लगाए गये,
जंगली जलस्रोतों में ज़हर घोला गया,
और निवाले में बारूद भर, रखा गया!
तब से अब तक कितने वनराज कितने गजराज
और कितने झुंडो का सफाया हुआ!
और कितने प्रकृति पड़ोसी कहाँ विलुप्त हो गये
तब अगला क्रम - युद्ध में बारूद और गैस
और फिर अगला क्रम नागासाकी हिरोशिमा
और फिर अगला क्रम - कई कदम आगे
युद्ध और शांति की दहलीजों के पार -
न फंदे, न बारूद, न ज़हर, न गैस -
जिसके लिए किसी घोषित युद्ध या शांति
की जरूरत नहीं –
यह तो बस एक मौसमों में घुला हुआ
शून्य में भी दस्तक देता वायरस, -
भस्मासुर चंगुल में पकड रहा है, मानव भाग रहा है,
कोई संदेह नहीं बचा है? कोई प्रश्न नहीं?
सशरीर स्वर्गारोहण का मार्ग महाविनाशक
द्वार है, मानव जाति की बलि बेदी है,
भस्मासुर प्रभु की विडम्बना हो सकती है,
पर मानवता का विनाश मात्र,
भस्मासुर का यह पहला दुष्प्रयोग
या प्रथम दुर्घटना हो सकती है
पर अन्तिम अवसर है साथी,
दिशा बदल दो, आओ चलें
अपनी धरती पर, अपने प्रकृति मे
अपने पड़ोसियों के बीच