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एक्कीस / आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'

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हँस-हँस अपना शीश चढ़ा कर
मोल न सिर का माँगा

तुम न कहो धरती कह देगी
मिट्टी-पत्थर-पानी
सब पर छाई एक निशानी

हो जाए इतिहास भेले चुप हम कर लें नादानी
किन्तु भाल भारत का ऊँचा कह देगी कुर्वानी
प्रकृति लिखेगी अमर पट्ट पर
जो मुँह खोल न माँगा
हँस-हँस अपना शीश चढ़ा कर...

चला गया जो वीर खींच कर
निज शोणित की रेखा
भारत सीते! बंद रहो तुम
अडिग अक्ष्मण रेखा

भारत की शरहद पर मर जो खींचा अमिट निशानी
खो जायेगा जिस दिन सूरज, सो जायेंगे प्राणी
उसके यश को शून्य कहेगा
जो मुँह खोल न माँगा
हँस-हँस अपना शीश चढ़ा कर...

दुश्मन के सिर फूल चढ़ा दो
लाल खून का पानी
शीश चढ़ाने वालों की भू
है भारत माँ रानी

मेरा कोटि प्राणम उसे है
जो सिर टोल न माँगा
हँस-हँस अपना शीश चढ़ा कर...