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एक और दिन हुआ / केदारनाथ अग्रवाल
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एक और दिन हुआ
तमाम दिन आदमी खोजता रहा एक और कुआँ
कुएँ में खोजता रहा पानी
अब पानीदार होने के लिए
मरते दम तक
जिंदगी का बोझ ढोने के लिए
एक और दिन हुआ
आदमी का मुँह फिर
हुआ धुआँ-धुआँ
रचनाकाल: १९-०६-१९७६, मद्रास