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एक और रात / उंगारेत्ती
Kavita Kosh से
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इस अंधेरे में
ठंडे हाथों से
महसूस करता हूँ अपना चेहरा
देखता हूँ ख़ुद को
बेसहारा
अनन्त आकाश में ।
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इस अंधेरे में
ठंडे हाथों से
महसूस करता हूँ अपना चेहरा
देखता हूँ ख़ुद को
बेसहारा
अनन्त आकाश में ।