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एक चुनौती / साधना जोशी

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देष की नारी सावधान हो ।
नई चुनौती आयी ह,ै
नये नियमों के ताल मेल में
एक बुझी मसाल लायी है ।

आरक्षण की चहल - पहल में
महिलाओं का नाम बढ़ा
तैतीस से षुरु होकर
पचास प्रतिषत और बढ़ा ।

देष की नारी को एक
दृढ प्रतिज्ञा लेनी है
अधिकारों की डोरी में
कर्तव्यों के मोती पिरोनेें हैं ।

कार्य क्षेत्र में अपने हर पल
कर्मों की ज्वाला जलानी है,
परिश्रम के अंगारों से अकर्मण्यता
की निषा मिटानी है ।

उँगली न उठाये कोई हम पर
कर्मों की इन राहों में,
सीने को फौलाद बना दो
व्रज बना दा बाहों को ।

निस्वार्थ कर्म के बीज हम बोंये
इस धरती मां के सीने में,
भाव के साथ दृढता को भी
साथ लेकर उत्साह दिखायें जीने में ।

हम बेटी हम बहनें है
हम संगनी हम माता है,
धरा का प्रतिरूप भी हम है
जिस पर जीवन चलता ।

दृढ प्रतिज्ञा लेकर हमको
आगे राह बनानी है,
घर बाहर की जिम्मेदारियाँ
कन्धों पर सजानी है।

ध्यान रहे हमें सदा
न कोई घर टूटे न कोई दायित्व छूटे,
देष समाज की राहों में कहीं
अपने हमसे ना रूठे ।

कडवाहट को पीना है झुंझलाहट
दूर भगानी है,
उत्साह जोष के साथ
नई ज्योति जलानी है ।