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एक टुकड़ा आसमान / आकांक्षा पारे
Kavita Kosh से
लड़की के हिस्से में है
खिड़की से दिखता
आसमान का टुकड़ा
खुली सड़क का मुँहाना
एक व्यस्त चौराहा
और दिन भर का लम्बा इन्तज़ार।
खिड़की पर तने परदे के पीछे से
उसकी आँखें जमी रहती हैं
व्यस्त चौराहे की भीड़ में
खोजती हैं निगाहें
रोज एक परिचित चेहरा।
अब चेहरा भी करता है इन्तज़ार
दो आँखें
हो गई हैं चार।
दबी जुबान से
फैलने लगी हैं
लड़की की इच्छाएँ
अब छीन लिया गया है
लड़की से उसके हिस्से का
एक टुकड़ा आसमान भी।