भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक दुष्ट हाथ / दहलिया रविकोविच

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धुआँ उठ रहा था तिरछी रोशनी में
और मेरे पिता मुझे पीट रहे थे ।
वहाँ सब हँस रहे थे देखकर
मैं सच कह रही हूँ, और कुछ नहीं ।

धुआँ उठ रहा था तिरछी रोशनी में
पिता ने मेरी हथेलियों पर चपत लगाई
उन्होंने कहा -- यह हथेली है एक दुष्ट हाथ की ।
मैं सच कह रही हूँ, और कुछ नहीं ।

धुआँ उठ रहा था तिरछी रोशनी में
और पिता ने छोड़ दिया मारना
उँगलियाँ उग आईं दुष्ट हाथों से,
यह सब कुछ सहन करती हुई
और कभी ख़त्म नहीं होगी ।

धुआँ उठ रहा था तिरछी रोशनी में
भय की सिहरन है दुष्ट हाथों में,
पिता ने छोड़ दिया मारना
लेकिन भय बाक़ी है और कभी ख़त्म नहीं होगा ।