भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक पूरी उम्र / मलखान सिंह
Kavita Kosh से
यक़ीन मानिए
इस आदमख़ोर गाँव में
मुझे डर लगता है
बहुत डर लगता है।
लगता है कि बस अभी
ठकुराइसी मेंढ़ चीख़ेगी
मैं अधसौंच ही
खेत से उठ जाऊँगा
कि अभी बस अभी
हवेली घुड़केगी
मैं बेगार में पकड़ा जाऊँगा
कि अभी बस अभी
महाजन आएगा
मेरी गाड़ी-सी भैंस
उधारी में खोल ले जाएगा
कि अभी बस अभी
बुलावा आएगा
खुलकर खाँसने के
अपराध में प्रधान
मुश्क बाँधकर मारेगा
लदवाएगा डकैती में
सीखचों के भीतर
उम्र भर सड़ाएगा।