भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक प्रेम की कविता / मणिका दास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भूल जाने से पहले ही उन्होंने थाम लिया
आँधी के चाटे हुए पेड़ को

सजीव बनाया जड़ के शुष्क होठों को
सीने के लहू से

सहारा दिया
धूप-बारिश में
सर्दी-गर्मी में

एक दिन तन कर खड़ा हुआ
उनकी चाहत का पेड़
फूल-फल से लद गया

अब वे बाँसुरी बजाते हैं सुरीली
सुबह शाम रात
पेड़ के नीचे !

मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार