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एक बार फिर / दीपा मिश्रा
Kavita Kosh से
आज वर्षों बाद
मन हो रहा है कुछ लिखूँ
लिखूँ कोई कहानी
या कोई संस्मरण
कोई कविता लिखूँ
या कुछ अपने बारे में
खीचूँ कुछ रेखाएँ
सफ़ेद कागज़ों पर
भले टेढ़ी-मेढ़ी
छोटी या बड़ी
उठा लूँ वो पुराना ब्रश
भरूँ रंग उन तसवीरों में
जो रह गये थे अधूरे
पूरा न कर पाए थे हम
शायद कोई मज़बूरी
या फिर कोई और वजह
रंग दूँ उन्हें फ़िर से
जीवन के नये रंगों से
गाऊँ कोई गीत
जिसे गुनगुनाना चाहती थी
तितलियों के, चिड़ियों के
बादल के या झरनों के
तैरूँ उन लहरों में
एक बार फिर
जिनमें उतरना चाहा था
बंद मुट्ठी को खोल लूँ फ़िर से
गिरा दूँ सारे रेत
जो समय ने भर दिये हैं
फैला लूँ अपने पंख और
उड़ जाऊँ खुली आकाश में
क्या तुम आओगे साथ मेरे
हाँ आज वर्षों बाद
मैंने पाया है खुद को
एक बार फिर।