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एक यात्रा के बाद / प्रयाग शुक्ल
Kavita Kosh से
एक यात्रा के बाद
एक बार लौटा फिर
घर के दरवाज़े पर-
की ’ठक,ठक’
सुन पड़ी पीछे छूटी हुई नदियों
की लय!
’ठक,ठक’
दीख पड़े पीछे खड़े बहुत दूर
पहाड़!
रास्ते घुमावदार.
चाय की दुकानें
चट्टानें. खेत. चिड़ियाँ.
सुरंगें.
’ठक,ठक
खुला दरवाज़ा.
बच्चे थे घर पर
भड़भड़ाकर मेरे साथ
घुसने की कोशिश
करने लगीं नदियाँ
धँसना चाहने लगे
घर में पहाड़!