एक शाम लिखे / नवीन दवे मनावत
एक शाम लिखे
ढलते सूरज के दिल का पैगाम और
उसके संघर्ष की एक बात लिखे
उस शाम में न हो उदासियों के पहर
न हो गम की रातों के सन्नाटे
और न हो कोई विरहगान
ऐसी कुछ बात लिखे
जिसमे नहीं हो कोई भय
जिसमे नहीं हो भूखे आदमी की
आह!
न भटके कोई मृगतृष्णा की राह
न चिल्ल-पों की हो आवाज
और न हो कोई
रात के प्रारंभिक अनसुलझे
सपनो की बात
एक शाम लिखे
जिसमे न तड़प हो वृद्ध माँ की
न भयातुर हो पिता की आंखे
और
न पड़ी हो रिश्तों में दरारें
ऐसी सुलह की बात लिखे
एक शाम लिखे
जिसमे हो गायों के रंभाते स्वरों की वाणी
गोरज से उड़ती धूल
जो बने आदमी के मस्तक का तिलक
घर को लोटते मजदूर के
पसीने की गंध महसूस हो
जिसमे नहीं हो निराशा की बू
ढ़लते सूरज से बने स्वर्णिम पंखों वाले
पक्षियों के लोटने आहट हो
ऐसी एक खुशियों की शाम लिखे