भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऐसे भक्ति मोहे भावे उद्धवजी / सूरदास
Kavita Kosh से
					
										
					
					
ऐसे भक्ति मोहे भावे उद्धवजी ऐसी भक्ति । 
सरवस त्याग मगन होय नाचे जनम करम गुन गावे ॥ उ०॥ध्रु०॥
कथनी कथे निरंतर मेरी चरन कमल चित लावे ॥ 
मुख मुरली नयन जलधारा करसे ताल बजावे ॥उ०॥१॥
जहां जहां चरन देत जन मेरो सकल तिरथ चली आवे । 
उनके पदरज अंग लगावे कोटी जनम सुख पावे ॥उ०॥२॥
उन मुरति मेरे हृदय बसत है मोरी सूरत लगावे । 
बलि बलि जाऊं श्रीमुख बानी सूरदास बलि जावे ॥उ०॥३॥
	
	