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ओळ्यूं : सात / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
आज भूख लागी
कीं खांऊं
मन कर्यो
कांईं खांऊं
आ विचारतां ई
साम्हीं आयो
ताती रोटी रो
घी सूं चिरच्यो
खांड आळो चूरमो
हिंवड़ै री दीठ
व्हीर होयगी
उण चूरमै लारै
बठै तो पड़तख हो
मा थांरो मुंडो!
भूख अर चूरमै बिचाळै
जको कीं भंवै हो
बा ई तो ही
अदीठ ओळ्यूं!