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ओ गँवारिन पनिहारिन! / गुलाब खंडेलवाल

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ओ गँवारिन पनिहारिन!
जब गागर भरने की वेला थी 
तब तो तू सोयी रही,
रंगीन सपनों में खोयी रही,
और अब जब प्रिय की बाँहों में समाने की घड़ी आयी है,  
तेरे मन में गागर भरने की धुन समाई है.