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ओ मेरे विशेषण / भारत भूषण अग्रवाल
Kavita Kosh से
हर विशेषण विशेष्य को कमज़ोर करता है
क्योंकि वह उसे अपना मुहताज बना लेता है
इसीलिए तो, मेरे विशेषण !
तुम मुझसे जीत गए हो
इसीलिए तो तुम हर बार मुँह फ़ाड़ कर हँसते हो
जब मैं तुमसे अपना सिर टकराता हूँ ।
कितनी बड़ी मूर्खता थी यह सोचना कि तुम्हारे बिना मैं कुछ नहीं हूँ
जब कि मैं जो कुछ हूँ, हो सकता हूँ, या होऊँगा
वह उतना ही जितना तुम्हारे बिना हूँ ।
तुम मैं नहीं हो यह ठीक है
तो फिर तुम हो ही क्या
महज़ एक डर, एक संकोच, एक आदत
जिससे मैं चाहे छूट न भी पाऊँ
पर जो मैं नहीं हूँ ।