ओ मेरे शरीर / रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
ओ शरीर आज तुम कितने थके
आज तुमने कितनी सीढ़ियाँ चढ़ीं
सारे दिन तुम को बाईक पर घुमाता रहा
सुबह न एक्सरसाइज दी न नाश्ता
तुम्हें लिए लिए देर तक पड़ा रहा
फिर जल्दी पहुँचने की भागम-भाग में
दौड़ता रहा, खींचता रहा, धूप और धूल में
ओ शरीर, तुम मेरे सबसे अच्छे रूममेट हो
मेरी तनाव भरी उलझी ज़िन्दगी में
मैं तुम्हारे लिए खड़ा कर लेता हूँ रोग
तुम मुझ से चीख़ कर नहीं बोलते लेकिन
बता देते हो कि तुम अब थक रहे हो
फिर भी घर की ओर लौटते-लौटते
तुम्हें लिए रुक जाता हूँ बस दस मिनट और
तुम्हारे न चाहते हुए भी दोस्त के साथ चाय
साथ-साथ सिगरेट भी पी लेता हूँ
तुम बताते हो खीझते हो, सीने में जलन को लेकर
और मैं लौटते हुए तुम्हें कितना थका डालता हूँ
मेरे काम के पीछे तुम सर्दी गर्मी झेलते हो
आफ़िस में देर रात में दर्द होने तक
फिर किसी पार्टी में जाने का कोई कार्यक्रम
तुम फिर भी साथ देते रहते हो रात तक
जहाँ मैं लौटता हूँ तुम्हें लेकर कमरे पर
तुम पस्त हो चुके होते हो दुनिया की झिकझिक से
तुम्हारा लोच को खोकर कितना कुछ नष्ट कर लिया
मेरा और तुम्हारा साथ ज़िन्दगी का साथ है
तुम अपने लिए हो और मैं अपने लिए रहूँगा
आख़िर इस सब के लिए मुझे माफ़ी माँगनी चाहिए
ओ मेरे शरीर मैं तुमसे माफी चाहता हूँ...मुझे दो