औरत / शिवनारायण जौहरी 'विमल'
मोहनी, घर भर का खिलोना।
सब कुछ नया है अजूबा है
पकड़ लेती है चमक देख कर
जलता हुआ कोयला।
किशोरी, पल्लू को हटा कर
क्या दिखाना चाहती है
आयने को।
मन के एक कोने में
छिपी है कामना
लज्जा का श्रृंगार
कोई पलट कर देख ले
मीठी नज़र से।
द्राक्षासव
सरिता का भींगा किनारा
हवा फैला देती है
जवानी की मादक महक।
एक सूनापन उभरता है
उसके आँगन में
झाड कर साफ़ रखती है।
अनाम आगंतुक की प्रतीक्षा।
घूंघट में संजोती है
सपने हज़ारों
प्यार की प्यास के
उजले धरातल पर
महरवां जिंदगी
भुजपाश की अंगडाइयाँ
समय थम-सा गया।
टूटने लगे जब कंचुकी के बंद
अंक में होने लगी
मातृत्व की सिहरन
एक तारा
उतरने लगा आकाश से।
लम्बे सफ़र में
भर जाता है इतना
ताप तन मन में
कोई छूले तो झुलस जाए
पर धुआं बाहर नहीं आता।
परिवार ही संसार है उसका
चिड़िया अपने
घोंसले को बचाने के लिए
सांप से लडती है
अंतिम स्वांस तक।