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कइसन ई आजादी / दयानन्द प्रसाद
Kavita Kosh से
चनेसर सिंह कहलन
घोर कलयुग आ गेल,
कहाँ आजादी मे लोग
सेवा तप आउ त्याग के
खातिर राजनीति मे उतरऽ हलऽ
आज तो टिकटे लगी महाभारत मचल हे
सास के खिलाफ पुतौह
माय के खिलाफ बेटा
चच्चा के खिलाफ भतीजा
मेहरारू के टिकट मिलल तो
साली रूस गेली
बेटी के टिकट देलाबे माय घुस गेली ।
नेता जी कहित हथ
परिवार के लोग राजनीति में नय उतरतन,
तो का ऊ काशी काबा जयतन
एक मजदूर दोसर मजदूर से कहलक
ई तो कनकनी जान मारले हे
पछिया हवा हे कि अपन चकचकी चलैले हे
सूरज भी बादल मे मुंह छिपैले हे
कल के चिन्ता जान मार ले हे
छप्पर भी वर्षा से उड़ गेल हे
मुनिया के बदन पर पूरा कपड़ो नय हे
घर मे अनाज के मुट्ठी भर दानो नय हे
का हो भइया
इहे आजादी हे।