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कठपुतलियाँ / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
महीन धागे
थामे हुए कठपुतलियों को
खरीदते हैं
बेचते हैं
भोली कठपुतलियाँ
सोचती हैं
बाज़ार उन पर टिका है