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कदाचित् / नीरजा हेमेन्द्र
Kavita Kosh से
कदाचित्
आओगे तुम
एक दिन/ मुझे पता है
चलेंगी आँधियाँ
बरसेगी आग चहुँ ओर
तुम आओगे/ पूर्व की भाँति
तुम्हारे नेत्रों से निकलने वाले
प्रकाश पुँज से
पिघलेगी बर्फ
जो सर्द कठोर हो कर
ऊँचे पहाड़ों पर
जहाँ नही जातीं मानवीय भावनायें
कठोर, सफेद चादर हटेगी एक दिन
कल-कल करती नदी के जल-सा
निर्मल/ तुम्हारा अक्स
शिशु की भाँति कोमल/तुम्हारे हाथ
तोड़ेंगे पहाड़ों पर जमीं बर्फ
आओगे तुम एक दिन
मुझे पता है।