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कब्र पर रोशनी / नंद चतुर्वेदी

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हम रोज एक सपना देखते हैं
रोज दफना कर लौट आते हैं

दरवाजे पर ही मिल जाते हैं
गमगीन लोग
एक मुट्ठी मिट्टी
और हवा के बीच
एक पत्ते के सूखे सपने के लिए
उदास और बेचैन

पादरी अपनी किताब खोलता है
पढ़न लगता है
तुम्हें वहाँ अन्न मिलेगा
क्योंकि यहाँ तुम भूखे थे

एक उदास पेड़ की पत्तियाँ
गिर गयीं थीं
पादरी की किताब पर
एक दयालु आदमी की तस्वीर बनी थी

लोगो ने ‘आमीन’ कहा
और वे उठाकर ले गये
अपने कंधों पर
एक रक्तहीन प्यासे सपने को
लौटते वक्त कब्र पर
जो रोशनी उन्हें दिखायी दी
पीली और असहाय
अस्त होती हुई
उसी रोशनी में उन्हें चलना था
दूसरे दिन सुबह उठकर

फिर इस अन्तहीन पृथ्वी पर
इस खाक में मिल जाने के लिए
जहाँ से हरे और बड़े-बड़े पत्तों वाला
पेड़ उगता है
सघन और मजबूत।