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कमाल की औरतें २० / शैलजा पाठक
Kavita Kosh से
तुम यहां रुको
मैं रुक गई
जल्दी चलो
मैं दौड़ पड़ी
किसी से कुछ मत कहना
मैं चुप रही
अब रोने मत लगना
मैंने आंसू पी लिए
देर से आऊंगा
मैंने दरवाज़े पर रात काट दी
खाने में क्या?
मैंने सारे स्वाद परोस दिए
तुम्हारे चिल्लाने से
सहम जाते हैं मेरे बच्चे
मैं तुम्हें नाराज़ होने का
कोई मौका नहीं देती
और तुम मुझे जीने का।