करूणा भरल ई गीत हम्मर.. / धीरेन्द्र
करूणा भरल ई गीत हम्मर,
प्राणकेर झंकार।
दए रहल छी हम जगतकें
अश्रुटा उपहार।
सोचने छलहुँ दुनियाँ बसाबी,
सोचने छलहुँ नन्दन लगाबी,
स्वप्न छल जे बस उतारी
स्वर्ग हम साकार।
हेरा गेल सभ कल्पना अछि,
मेटा गेल सभ भावना अछि,
आइ नन्दन केर जगह पर
ठाढ़ बस झंखार।
प्यास छल, जे अमृत पीबी,
प्यास छल जे स्नेह पाबी,
धारणा छल जे बहाबी
खाली सुधाकेर धार।
लुप्त सभटा कल्पना अछि,
आइ सभटा जल्पना अछि,
हेरा गेल अछि आइ सभटा प्राणकेर मनुहार।
लक्ष्य छल एक सर खुनाबी,
पुलकेर बस जल मँगाबी,
प्रत्येक लहरिक ठोरमे हो
बस मधुर संचार।
दूर सभटा कल्पना अछि,
दूर सभटा भावना अछि,
अछि सलिल केर ठाम पर
बस लह-लह करइत अंगार।
सोचैत छी जे तोष कएली,
नोरसँ निज कोष भरि ली,
हमर जीवन बनओ खाली
अश्रु केर भंडार।
ध्वस्त सभटा कल्पना अछि,
बंचि गेल खाली वेदना अछि,
कए रहल छी एहीसँ हम
अश्रुकेर व्यापार।
करूणा भरल ई गीत हम्मर प्राणकेर झंकार।