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कर्णफूल / अविनाश मिश्र
Kavita Kosh से
बहुत बड़े थे वे और भारी भी
तुम्हारे कानों की सबसे नर्म जगह पर
एक चुभन में फँसे झूलते हुए
क्या वे दर्द भी देते थे
तुम से फँसे तुम में झूलते हुए —
क्या बेतुका ख़याल है यह —
क्या इनके बग़ैर तुम अधूरी थीं
नहीं, आगे तो कई तकलीफ़ें थीं