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कर्तव्य / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’
Kavita Kosh से
शहद सा मीठा बोलने वाला आज
तीखा कैसे बोल गया
कुछ भी समझ में नहीं किसी को आया
एक लतीफा बोल गया।
आदमी समाज का था क्या वह करता
समाज से ही टूट गया
फैसला कर्तव्यनिष्ठ नहीं था हक में
इसलिए आज रूठ गया।
पंचों से सबका, अब टूट रहा भरोसा
हक इंसानी मार गया
खोटी नीयत देख, वह उससे दूर हुआ
आज जुवानी हार गया।
मुँह देखकर उनकी हो जाती है बातें
दिल क्यों लाचार बन गया
लोभ के मोहफांस में फंसे हैं ऐसे
आपस में खार बन गया।
दुनियाँ की हालात को ऐसे देखा है
था दमखम तो जीत गया
अभी बूढ़ा हूँ बरगद सा सब देख रहा
जिंदादिल हूँ, अतीत गया।