कविता / मृत्युंजय प्रभाकर
वाग्जाल नहीं 
शब्दों को सही अर्थ देना है कविता 
 
तुम जो आदि हो चुके हो 
सब सड़े-गले 
मृतपाय 
संस्कारों को 
रामनामी पहनाकर 
अमर कर देने के 
उसे उधेड़ने का नाम है कविता 
 
कितनी अजीब बात है 
जो कुछ समय पहले 
किसी तरह धकियाकर 
अपनी बर्थ पक्की कर चुका है 
वह इसे ही शाश्वत सत्य बतलाने लगता है 
घोषित करता है उसे 
इतिहास के परे की चीज़ 
इतिहास की इन्हीं 
परतों को उधेड़ने का नाम है कविता 
 
संगमरमर की तराश को खुरच 
तुम जो शीशे का महल बना रहे हो 
और शीशे को अपारदर्शी बना 
उसका धर्म बिगाड़ रहे हो 
उसे एक जोर में चटका देने वाले 
पत्थर का नाम है कविता  
 
तुम्हारा विलास नहीं 
गरीबों-मज़लूमों की आह है कविता 
हर रुंधे गले में वास करने वाली 
तान का नाम है कविता 
 
कविता वह लाल मिर्च है 
जो सिर्फ़ खाने का स्वाद नहीं बढाती 
आँख में पड़ जाए 
तो उंगली कर देती है।
	
	