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कविता की फसल / सत्यनारायण सोनी
Kavita Kosh से
कविता की यह फसल
अभी कच्ची है
मैं इसे पकाऊंगा
गेहूं की फसल की तरह।
तब उस फसल को
काटूंगा
खलिहान में डाल
निकालूंगा दाने,
चमचमाते
पक्के दाने।
फिर उन दानों को
पटकूंगा-छटकूंगा
छांटूंगा काले दाने
बीनूंगा कंकड़।
बनाऊंगा तब उनसे
सिर्फ एक रोटी
खाएंगे जिसे
दुनिया के तमाम लोग
एक ही थाली में
एक साथ।
1990