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कवि / निदा नवाज़
Kavita Kosh से
पीड़ाओं की तीव्रता को
बेबस लम्हों की नोक पर
आंकना
अनिंद्रा - नाव को
रात के मंझधार में से
करवटों के चप्पू के सहारे
निकालना
घटनाओं की
सूखी कंटीली झाड़ी का
अपनी आत्मा के
नर्म ऊन में से
गुज़रते देखना
लोगों के हजूम में भी
ईश्वर भर
तन्हा हो जाना
भीतर ही भीतर
सौ बार जलना
सौ बार बुझना
अपने मस्तिष्क के कैनवास पर
अपने ही रक्त रंग से
एक विचित्र सृष्टि को रचना
और आकाश में उड़ने की प्रवृत्ति
मन में लिए
एक परकटे परिंदे की
फड़फड़ाहट को
अपने भीतर महसूस करना
एक कवि बन जाना
होता है.