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कवि / राकेश रंजन
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निकलता है
पानी की चिन्ता में
लौटता है लेकर समुन्दर अछोर
ठौर की तलाश में
निकलता है
लौटता है हाथों पर धारे वसुन्धरा
सब्जियाँ खरीदने
निकलता है
लौटता है लेकर भरा-पूरा चांद
अंडे लाने को
निकलता है
लौटता है कंधों पर लादे ब्रह्मांड
हत्यारी नगरी में
निकलेगा इसी तरह किसी रोज़
तो लौट नहीं पाएगा!