भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहने की बातें ही बातें / नईम
Kavita Kosh से
कहने की बातें ही बातें,
करने की कुछ हम-तुम कर लें।
बार-बार मरने से बेहतर
एक बार में ही हम मर लें।
धरे हाथ पर हाथ निठल्लों की जमात में,
अपने तम्बू छोड़ दूसरों की जमात में-
बैठे बैठे रहें देखते-
भले खेत आवारा चर लें?
हुआ अगर ऐसा तो धरती फट जाएगी,
अब तक जैसी कटी, न आगे कट पाएगी।
लगे जरूरी तो हम उठकर,
साथ-साथ वैतरणी तर लें।
दबे हुए हैं इनके-उनके एहसानों से,
चेहरे भी रह गए न अपने इंसानों-से।
घड़े पाप के भरे न हों तो
जल्दी से हम उनको भर लें।