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कहाँ देखा है इसे / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
याद नहीं आता
कहाँ देखा है इसे
प्रेम पत्र लिखते
या शिशु को स्तन पान कराते
कोणार्क या खजुराहो
किन पत्थरों में बहती
यह स्त्रोतस्विनी
किन लहरों पर उड़ते हुए
पहुँची है यहाँ तक
देखा है इसे अफ़वाहों के बीच
जब इसका पेट उठ रहा था ऊपर
और शरीर पीला हो रहा था
जिसे छिपाने की कोशिश में
यह स्वयं हो गई थी अदृश्य
हाथ पसारे मिली थी यह एक दिन
एक अनाम टीसन पर
बूढ़े बाप की ताड़ी के जुगाड़ के लिए
लपलपाती जीभों के बीच
एक दिन पड़ी थी अज्ञात
यह नितम्बवती उरोजवती
चेतनाशून्य सड़क पर
यही है
जो महारथियों के बीच नंगी होती
करती अगिन अस्नान
धरती में समाती रही युगों-युगों से
लोक मर्यादा के लिए
यही है
जिसे इतनी बार देखा है
कि याद नहीं आता
कहाँ देखा है इसे ।