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कहां है अंत / गोबिन्द प्रसाद
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न कोई
आदि है न कोई अन्त
न कोई
घरबारी है न कोई सन्त
न कोई
सिरा है कहने का न कोई तन्त
जीवन के पार भी जीवन हैं, जीवन हैं
जाना ही आना है,जीवन है अनन्त
कहाँ है आदि,कहाँ है अन्त
कहाँ है अन्त