भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहा नातू ने / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
'उड़ रहे पक्षी उधर हैं बादलों में'
कहा नातू ने
'इधर तितली फिर रही है
फूल-पत्तों पर
पता है, नाना, तुम्हें क्या
कहाँ इसका घर
'इधर से जाती उधर यह कुछ पलों में'
कहा नातू ने
'पेड़ से उतरी अभी जो
यह गिलहरी है
कहो, नाना, रात-भर
यह कहाँ ठहरी है
'धूप भी है साथ इसकी हलचलों में'
कहा नातू ने
'अरे नाना, उधर देखो
सात रँग का पुल बना
ठीक-नीचे खड़ा उसके
पेड़ का उजला तना
'मोर होंगे नाचते क्या जंगलों में'
कहा नातू ने