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कहि दैत छी / चंदन कुमार झा
Kavita Kosh से
अहाँ जँ कऽ सकैत छी
चारूभर अन्हार
तऽ हमहूँ भगजोगनी छी
जीवन भरि बरिते रहब
अहाँ जँ बूझैत होयब
अपनाकेँ भोरुकबा
तऽ हमहूँ
अपन चानक
किरिया खा कहैत छी
हमहूँ छी सूर्य
बैसले रहब भोरक प्रतीक्षामे
जँ कदाचित अहाँ
राहु कि केतु बनि
बनाइयो लेब हमरा अपन ग्रास
तऽ कनिय नहि घबरायब हम
बूझल अछि हमरा
लगले भेटत उग्रास