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कहीं मुझे जाना था / मंगलेश डबराल
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कहीं मुझे जाना था नहीं गया
कुछ मुझे करना था नहीं किया
जिसका इंतज़ार था मुझको वह यहाँ नहीं आया
ख़ुशी का एक गीत मुझे गाना था गाया नहीं गया
यह सब नहीं हुआ तो लम्बी तान मुझे सोना था सोया नहीं गया
यह सोच-सोचकर कितना सुख मिलता है
न वह जगह कहीं है न वह काम है
न इंतज़ार है न वह गीत है और नींद भी कहीं नहीं है
(रचनाकाल : 1997)