भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क़र्ज़ को यूँ चुकायेंगे / रमा द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


दर्द में भी ज़िन्दगी को जीते जायेंगे।
ज़िन्दगी के क़र्ज़ को हम यूँ चुकायेंगे॥

लक्ष्य लेके रास्तों पे बढ़ते जायेंगे
, ढूँढ़ लेंगे मंजिलें या निशां बनायेंगे,
रास्ते की अड़चनों से टकरायेंगे.....
दर्द में भी ज़िन्दगी को जीते जायेंगे॥

रोज नए रिश्ते यहाँ बन तो जायेंगे,
ज़िन्दगी की राहों में वे निभ न पायेंगे,
प्यार हो तो रिश्ते भी गुल खिलायेंगे....
दर्द में भी ज़िन्दगी को जीते जायेंगे ॥

ज़िन्दगी है बेवफ़ा यह हाथ नहीं आयेगी,
साथ में यहाँ से अपने लेके कुछ न जायेगी
, हमसफ़र हो साथ में तो मुस्कायेंगे.....
. दर्द में भी ज़िन्दगी को जीते जायेंगे ॥

ज़िन्दगी शतरंज भी है,ज़िन्दगी इक गम भी है
, ज़िन्दगी बदरंग भी है,ज़िन्दगी सतरंग भी है,
मुश्किलों में ज़िन्दगी को आजमायेंगे.....
. दर्द में भी ज़िन्दगी को जीते जायेंगे ॥