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काँच के घट / मनोज जैन 'मधुर'
Kavita Kosh से
काँच के घट हम
किसी दिन
फूट जाएँगे।
●
उम्र-काठी
काटती
दिन-रात
आरी।
काल के
कर में
प्रत्यंचा
है हमारी।
प्राण के सर ,
देह धनु से,
छूट जाएँगे।
●
योगियों ने
कह
दिया
ज्ञानावधि से।
देह -नौका
तारती है
भव
जलधि से।
डाल के फल हम
किसी दिन
टूट जाएँगे।
●
सब चराचर
भोगते हैं
कर्म
का फल।
मोक्ष अंतिम
लक्ष्य है
हर जीव
का हल।
पल न साधे
तो नटेश्वर
लूट जाएँगे।