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कादम्बरी / पृष्ठ 115 / दामोदर झा

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84.
एतबा कहि आलिंगन लय ओ भुजा पसारल
धड़फड़ाय हम पाछ हटलहुँ जतबा पारल।
ओकर क्रियासँ क्रोधे आँखि लाल भय गेले
नहि किछ बात बिचारल तुरत शाप दय देले॥

85.
हे भगवान चन्द्रमा, हमरा अहाँ जनै छी
पुण्डरीकके तजि नहि अनका पुरुष गै छी।
जँ ई सत्य पतिव्रत हमरो नहि बिगड़ल अछि
जँ तपस्विनी केर मार्ग निश्छल पकड़ल अछि॥

86.
तँ ई सुग्गा जकाँ वथा मुखराग प्रलापी
शुक जातिहिंमे सहय कष्ट दुर्जन खल पापी।
एतबा हमरा कहितहिं ओ ताही शापहिसँ
अथवा तैखन कयल नीच काजक पापहिसँ॥

87.
किं वा कर्मविपाक विचित्र विधाता चरिते
काटल तरु सन खसल भूमि छटपट तनु करिते।
मृतक शरीर प्रात अनुचरगण आबि उठओलक
चन्द्रापीड़क मित्रो शुकनासक सुत कहलक॥

88.
से हम छी डाकिनी मित्र केर मित्रक घाती
ठेला अछि पहिनहिसँ ते नहि फाटय छाती।
सुनिते चन्द्रापीड़क मन तनु काँपय लागल
कहलनि भेल अधीर देवि हम परम अभागल॥