कादम्बरी / पृष्ठ 23 / दामोदर झा
34.
सब जन हर्ष-विभोर अपन सब किछ बितरै छल
जे पओने छल दान आनके दान करै छल।
शुकनासो अतिहर्षक तोप निशानो दागल
गेल सूतिकावास नृपतिकेर गरदनि लागल॥
35.
देखल तखन तयन उत्सुकसँ बदन कुमारक
उदय-रागसँ लाल बिम्ब जनु अमृताधारक।
शुकनासो सब अंग देखि शिशु केरि नैपुण्ये
कहलनि भूप, पुत्र ई पओलहुँ पुरबिल पुण्ये॥
36.
ई अछि शंख-चक्र, ई ऊर्णा, ई जल सुत अछि
चक्रवर्ति केर, जे लक्षण सब टा संयुत अछि।
प्रविशल रानी-मुखमे विधु जे सपना देखल
सएह कलाधर जन्म लेल हम निश्चय लेखल॥
37.
एहिना अमृतक लहरि लैत छथि मन्त्री राजा
लेकक कान बहिर करिते छल सब टा बाजा।
मन्त्रिक घरसँ आबि एक कहलक परिचारक
मनोरमा अपरूब सुन्दर जनमओलनि दारक॥
38.
सुनिते राजा मन्त्रीके भरि पाँजे धयलनि
पूर्णपात्र कहि छीनि हुनक तौनी लय लेलनि।
कहलनि हर्षक उपर हर्ष ई दैव देखओलनि,
दुहू गोटाके दुख-सुखहुक समभागी कयलनि॥