कादम्बरी / पृष्ठ 81 / दामोदर झा
25.
मदलेखा कुर्सी देलक तकरा घुसकाके
बैसलाह कालीन उपर नम्रता देखाके।
कहलनि चन्द्रापीड़ देवि, ई रोग विषम अछि
फूलो उरमे गड़ए बाण बनि विधु रवि सम अछि॥
26.
मनमे भय उत्पन्न अहाँके ई सतबै अछि
हमरा ताहूसँ बेसी ई पीड़ा दै अछि॥
होइ अछि अपन शरीरो दयके स्वस्थ कराबी
जेना अहाँ होइ सुखी सकल से साज सजाबी॥
27.
कहलक मदलेखा हिनकर सनताप दुसह अछि
कमलक किसलय आगि जकाँ उर हेतु असह अछि।
गणक कहल निश्चय कुमार भावे कारण अछि
आपीड़े उडुराजक मात्र एकर वारण अछि॥
28.
अहीं करू उपचार रोग तैखन हँटि सकते
हम सब दासी बनल रहब याबत तनु रहते।
दुहु दिशि लागल अर्थ कुमार मनहिं मन बूझल
असमंजसमे रहल न एको मारग सूझल॥
29.
कयलनि गप्प महाश्वेतासँ हुनक विषयमे
अपनो भावक रोपल बीज हिनक आशयमे।
पुनि उठि कादम्बरीक लग जा ठाढ़ रहै छथि
जे छल हृदयक बात सकल लोचनहि कहै छथि॥