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कान्हा दिवस / कविता भट्ट
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					जन्माष्टमी को सार्थक करना 
तो अपना जीवन  सँवारो
छिप कर बैठा अन्तर में
उस कंस को तुम मारो
दही हांडी को फोड़कर
यूँ  न गली-नालो में बहाओ
कान्हा भी तब खुश होगा
किसी भूखे को अगर खिलाओ
अमल करके अपने ऊपर
फिर तुम संदेश फैलाना
अन्तर्मन में पैदा करके ही
तुम कान्हा -दिवस मनाना
 
	
	

