भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
का करबे संगी / नारायण बरेठ
Kavita Kosh से
का करबे संगी कइसनों करके जी लेबो ग,
कभू रइबो लाघन कभू पसिया पी लेबो ग ।
फरी तेल बिना तो तन निमगा भुसड़ीयाय रथे,
त खाय बर कहां ले हम डालडा घी लेबो ग ।
धन तो कान हे त कथा ल सुने बर मिलिस,
हमर मेर पैसा नइये त का आरती लेबो ग ।
खोदसना मार के देख झोइला बांचे हावय,
धोखा म झन रइहा समे म भभकी लेबो ग।
अराई कस कोंचट हे घर के दसना पीढा ह,
बताया चार पहर हम कइसे झपकी लेबो ग,
ले न ग एको कोहा खोभिहा के आउ मार,
जीयत-जागत रड़बो त तोर नाव ली लेबो ग।