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किनके हाथों में डफली दूँ / नईम
Kavita Kosh से
किनके हाथों में डफली दूँ,
किनके हाथ थमाऊँ मंजीरे?
चार खूँट चौपालें खाली,
लोटे फूटे, फूटी थालीं।
नाते-रिश्ते झगड़ रहे हैं,
भाई-चारे हुए मवाली।
अब बहार के टले महूरत,
घर से गायब राई-जीरे।
आधी-आधी आइ उन्हालू,
बिगड़ गई इस बरस सियालू।
कामधेनु नंदी जी भूखे,
प्यासे बंदर, प्यासे भालू।
मालव माटी बुझी-बुझी-सी,
धीर समीर न शिप्रा तीरे।
प्रभु के ढोल-नगाड़े फूटे, भोजन,
भजन, सकल जल जूठे,
अपने-राम मजूरी करते,
बिना पुजापे भेरू रूठे।
महाकाल छाती पर बैठा-
सिर जंगी आरी से चीरे।