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किमाश्चर्यमतः परम / रामनरेश त्रिपाठी
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कोई ऐसा पाप नहीं है,
जो करने से बचा हुआ हो,
फिर भी हम करते रहते हैं।
कोई ऐसा झूठ नहीं है,
जो कहने से शेष रहा हो,
फिर भी हम कहते रहते हैं॥
कोई ऐसी गाँठ नहीं है,
जो अब तक बाँधी न गई हो।
फिर भी हम बाँधा करते हैं॥
कोई निंदा रह न गई है
जो मुँह मुँह से बँट न चुकी हो,
फिर भी हम बाँटा करते हैं।
कोई ऐसी मौत नहीं है,
जो जीवन में बदल चुकी हो,
फिर भी हम मरते रहते हैं।
कोई ऐसा कष्ट नहीं है,
जिससे मन उकता न गया हो,
फिर भी हम धरते रहते हैं।