किसकी ओर से / अरुण कमल
मैं किसकी ओर से बोल रहा हूँ
उन असंख्य जीवों वनस्पतियों पर्वतों नदियों नक्षत्र तारे,
उन सबकी ओर से जो अब इस पृथ्वी पर नहीं हैं
पर जो कभी थे या होंगे?
नहीं, केवल मनुष्य योनि की ओर से, बस उन्हीं के लिए
जो अभी मृत्यु की प्रतीक्षा में जीवित हैं मर्त्यलोक में।
तो क्या मैं सभी महादेशों द्वीपों समुद्रों की ओर से बोल सकता हूँ?
नहीं, केवल एशिया की ओर से।
तो मैं पाकिस्तान चीन नेपाल वियतनाम की ओर से बोल सकता हूँ?
नहीं, तुम केवल भारत के नागरिक हो।
अखंड भारत का नागरिक अखंड भारत की ओर से?
नहीं, तुम्हें केवल बिहार आबंटित है।
...जिसकी देह अभी-अभी काटी गई दो हिस्सों में?
ख़ैर इतना भी कम नहीं कम से कम छह करोड़ लोगों की ओर...?
नहीं, छह करोड़ नहीं, केवल अपने धर्मवालों की बात करो।
तो क्या मैं अपने दोस्त इम्तू को छोड़कर बोलूंगा?
नहीं, उतना भी नहीं, केवल अपनी जाति, नहीं उपजाति की ओर से और केवल पुरुषों की
ओर से जो धन में तुमसे न ऊपर हैं न नीचे और यह तो तुम जानते ही हो तुम सबसे दरिद्र
हो सबसे कमज़ोर
महज एक कवि मनुष्यता का फटा हुआ दूध
इसलिए तुम्हें चेतावनी दी जाती है कि तुम किसी की ओर से
नहीं बोलोगे, अपनी ओर से भी नहीं-
उसके लिए राष्ट्र की संसद काफ़ी है।