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किसी नज़र में रही / आनन्द किशोर
Kavita Kosh से
किसी के लब पे रही या किसी नज़र में रही
मगर ये प्यास मुहब्बत की हर बशर में रही
क़ज़ा के वास्ते इक होड़ है पतंगों में
इस एक बात से ही शम्अ हर ख़बर में रही
मैं सोचता हूँ , ये एहसास की मेरे , दुनिया
न जाने कब से तेरे ख़्वाब के असर में रही
सुना है , एक ही शोले से जल गया बीहड़
बला की आग, ये हैरत है, उस शरर में रही
अजीब बात है सूरज से ले रहा है जिया
वही जिया भी हुई सर्द जब क़मर में रही
हमेशा हार गया तुझसे , भूल जा इसको
बता कमी है वो क्या जो मेरे हुनर में रही
ये और बात है 'आनन्द' पा गए मंज़िल
हर एक सिम्त से मुश्किल मगर सफ़र में रही