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किसी लय में कहीं / नंदकिशोर आचार्य

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कोई नहीं
हवा है यह
अपने ही आवेग में उलझी

सागर सारा जद्दोजहद में है
जंगल रक़्साँ है हर सू

समूची सृष्टि
बिखरी जा रही जैसे—
ठहराने हवा को
किसी लय में कहीं ।


11 सितम्बर 2009