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कुछ-कुछ अंधा / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
मैं कुछ-कुछ अंधा हूँ
कुछ-कुछ मुझे दिखाई देता है
शुक्र है कि मैं अभी इतना भी अंधा नहीं हुआ कि
मुझे अपना कुछ-कुछ अंधा होना पता न चले!