जीवन की मेरी प्याली में
दुःख की चीनी
क्या कम थी
जो तुमने उड़ेल दिए
कुछ और चम्मच दुःख !
खैर,
कोई बात नहीं
पियूँगा इसे भी...
पीता आया हूँ जैसे गरल
फेनिल काली रातों का ।
जीता आया हूँ
लड़-भिड़ कर
साक्षात यम से जैसे
मैं जीऊँगा...।
चिथड़े साँसों की
फिर-फिर सिऊँगा ।।